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ग़ज़ल
वो तुख़्म-ए-सोख़्ता थे हम कि सर-सब्ज़ी न की हासिल
मिलाया ख़ाक में दाना नमत हसरत से दहक़ाँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बे-रवी ओ ज़ुल्फ़-ए-यार है रोने से काम याँ
दामन है मुँह पे अब्र-ए-नमत सुब्ह-ओ-शाम याँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
थीं अपनी आँखें हल्क़ा-ए-ज़ंजीर की नमत
पैवस्ता हिल रही दर-ए-बैतुस-सनम के साथ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया
दे के कबाब-ए-दिल तुझे हक़्क़-ए-नमक अदा किया
शाह नसीर
ग़ज़ल
मा'लूम नहीं क्या बात कही ग़म्माज़ ने उस से जो हम से
थीं पहली बातें और नमत अब बोले है चंचल और तरह
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मज्लिस में तेरी काविश-ए-मिज़्गाँ के हाथ से
ग़ुंचा नमत हर एक जिगर लख़्त लख़्त था
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है