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ग़ज़ल
शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे
घिसते घिसते घिस गए आख़िर कंकर जो नोकीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
फूल सी बातें फूल सा लहजा फूल से लब थे फूल से गाल
लेकिन शाख़-ए-बदन के सारे ख़ार बहुत नोकीले थे
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
तुम क्यूँ तेज़ नोकीले नेज़े तान के मुझ पर झपटे हो
मेरा मुक़द्दर तुंद बगूलो यूँ भी तो बुझ जाना है
रशीद क़ैसरानी
ग़ज़ल
यक़ीं मानो ये मेरे होंट यूँ नीले नहीं होते
अगर ये लोग साँपों से भी ज़हरीले नहीं होते
अज़हर कमाल ख़ान
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़लसफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे