आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "واہموں"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "واہموں"
ग़ज़ल
मुझे वाहिमों ने डसा कभी कभी चीख़ती रहीं ख़्वाहिशें
मैं जो मुब्तला-ए-फ़रेब थी सर-ए-दार सपने सजा दिए
शहनाज़ मुज़म्मिल
ग़ज़ल
आज के सारे हक़ाएक़ वाहिमों की ज़द में हैं
ढालना है तुझ को ख़्वाबों से कोई पैकर तो आ