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ग़ज़ल
देख कर चाँद सितारे भी हैं ‘अश-‘अश करते
माँग-टीके पे जो याक़ूत जड़ा होता है
अब्दुल क़ादिर अहक़र अज़ीजज़ि
ग़ज़ल
रंग हवा से यूँ टपके है जैसे शराब चुवाते हैं
आगे हो मय-ख़ाने के निकलो अहद-ए-बादा-गुसाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हर-बुन-ए-मू से दम-ए-ज़िक्र न टपके ख़ूँ नाब
हमज़ा का क़िस्सा हुआ इश्क़ का चर्चा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सर्द हवाओं से तो थे साहिल के रेत के याराने
लू के थपेड़े सहने वाले सहराओं के टीले थे