आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "پاکیزگی"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "پاکیزگی"
ग़ज़ल
हुस्न का बाज़ार आना जाना भी कुछ बढ़ रहा है
कुछ मिरी आँखों की भी पाकीज़गी कम हो रही है
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
तो फिर मैं सोचता हूँ रूह की पाकीज़गी क्या है
मोहब्बत जब मुझे अपना बदन महसूस होती है
इमरान शमशाद नरमी
ग़ज़ल
मोहब्बत की अगर पाकीज़गी पर तुम यक़ीं करते
तो मिल कर तुम से पूरा सब ख़सारा हो गया होता