Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

कभी पैरों से आँखों तक चुभन महसूस होती है

इमरान शमशाद नरमी

कभी पैरों से आँखों तक चुभन महसूस होती है

इमरान शमशाद नरमी

MORE BYइमरान शमशाद नरमी

    कभी पैरों से आँखों तक चुभन महसूस होती है

    कभी ये ज़िंदगी मुझ को चमन महसूस होती है

    मसाफ़त ने मुसाफ़िर से कहा तू थक रहा है क्यूँ

    थकन महसूस करने से थकन महसूस होती है

    तो फिर मैं सोचता हूँ रूह की पाकीज़गी क्या है

    मोहब्बत जब मुझे अपना बदन महसूस होती है

    बुलंद-ओ-बाला लगती है कभी ये आसमाँ जितनी

    कभी ये छत मुझे अपना कफ़न महसूस होती है

    वहाँ मिट्टी-तले मैं हाए कैसे साँस खींचूँगा

    मुझे ताज़ा हवा में भी घुटन महसूस होती है

    आँखों में वो पहले सा कोई फ़व्वारा उठता है

    सीने में वो पहली सी जलन महसूस होती है

    ये दुनिया पहले भी ख़ुद में मगन महसूस होती थी

    ये दुनिया आज भी ख़ुद में मगन महसूस होती है

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए