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ग़ज़ल
छाया है 'क़तील' अक्सर दिल पर नादीदा नज़ारों का जादू
हम बादिया-पैमा थे लेकिन फिर भी चमनों की याद आई
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
इस ज़माने में तिरे बादिया-पैमा भी अजब
जम के बैठें जो कहीं मिस्ल-ए-नगीं नाम करें
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
ग़ज़ल
न पहुँच सका ज़माना मिरे हाल तक न पहुँचे
मैं वहाँ हूँ जादा-पैमा कि ख़याल तक न पहुँचे