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ग़ज़ल
हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
छुपाना क्या एक का था मंज़ूर आज तक हैं जो चार मशहूर
ज़बूर तौरेत मुसहफ़ इंजील पाँचवीं है किताब-ए-आरिज़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
क्या सभी सीने जल चुके क्या सभी दिल पिघल चुके
बू-ए-कबाब अब नहीं आह-ए-जिगर-गुदाज़ में