आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "کلکتہ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "کلکتہ"
ग़ज़ल
कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ
अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
कलकत्ता में उल्फ़त की गवर्नर है सदा इश्क़
आमादा हो तू रुस्तम-ए-दस्तान समझ कर
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
कलकत्ता में हर दम है 'मुनीर' आप को वहशत
हर कोठी में हर बंगले में जंगला नज़र आया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
कलकत्ते ने नाबूद किया ख़्वाब-ए-ख़ुशी को
पल-भर मुझे इस शहर में राहत नहीं आती
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
कलकत्ता से भी कीजिए हासिल कोई तो इल्म
सीखेंगे सेहर-ए-सामरी हम चश्म-ए-यार से
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
ग़ज़ल
मालिक-उल-मुल्क नसारा हुए कलकत्ते के
ये तो निकली अजब इक वज़्अ' की जंजाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कलकत्ते को जाना था तो गाड़ी पकड़ा बम्बई की
पूछ रहा है चाँद का रस्ता ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ
अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
कूकता फिरता है कोई धूप की गलियों में शख़्स
सुन लिया है उस ने शायद हाल मेरी शाम का
अली अकबर नातिक़
ग़ज़ल
ढके रहते हैं गहरे अब्र में बातिन के सब मंज़र
कभी इक लहज़ा-ए-इदराक बिजली सा कड़कता है