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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कपड़े बदल कर बाल बना कर कहाँ चले हो किस के लिए
रात बहुत काली है 'नासिर' घर में रहो तो बेहतर है
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
कूच अपना उस शहर तरफ़ है नामी हम जिस शहर के हैं
कपड़े फाड़ें ख़ाक-ब-सर हों और ब-इज़्ज़-ओ-जाह चलें
जौन एलिया
ग़ज़ल
नूर का तन है नूर के कपड़े उस पर क्या ज़ेवर की चमक है
छल्ले कंगन इक्के जोशन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी