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ग़ज़ल
आगे कछवे की कमाँ के क़द्र क्या उस की रही
थी फ़रीद-आबादी अपनी गो कमान-ए-रेख़्ता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ग़लत अंदाज़ा था ख़रगोश का कछवे के बारे में
पहुँचना है पहुँच जाएँगे काहिल से ज़रा पहले
नज़्र फ़ातमी
ग़ज़ल
उन्हीं ने जीती हैं बाज़ी बड़ी बड़ी 'सारिक़'
वही जो कछवे के जैसे ख़िराम करते हैं
सारिक ख़ान सारिक
ग़ज़ल
जिस शख़्स ने भी खाए हैं संगीन ज़ख़्म-ए-दिल
देते उसी को हैं यहाँ तस्कीन ज़ख़्म-ए-दिल
मंजु कछावा अना
ग़ज़ल
छीन कर कोई सकूँ बस दे गया है इज़्तिराब
जाने कैसे रब्त की ये इब्तिदा है इज़्तिराब