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ग़ज़ल
तेरी यादों की ये बाद-ए-सबा जब ख़ून रोती है
मिरा वहम-ओ-गुमाँ और दिल का खंडर चीख़ उठता है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
हर इक ख़िश्त-ए-कुहन अफ़्साना-ए-देरीना कहती है
ज़बान-ए-हाल से टूटे खंडर फ़रियाद करते हैं