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ग़ज़ल
जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो
कल पशेमाँ हों कि क्यूँ दिल का कहा माना नहीं
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊँगा
राजेन्द्र नाथ रहबर
ग़ज़ल
कल ये ताब-ओ-तवाँ न रहेगी ठंडा हो जाएगा लहू
नाम-ए-ख़ुदा हो जवान अभी कुछ कर गुज़रो तो बेहतर है