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ग़ज़ल
सुर्ख़ सुनहरा साफ़ा बाँधे शहज़ादा घोड़े से उतरा
काले ग़ार से कम्बल ओढ़े जोगी निकला रात हुई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इज़्ज़त ये प्यादगी की कम है कि घोड़े वाले
घोड़े से देखते ही मुझ को उतर पड़े हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मंज़र मंज़र भीग रहा है शहर की ख़ाली सड़कों पर
पक्की नहर पे गाँव के घोड़े की टॉप सवारी है
सिदरा सहर इमरान
ग़ज़ल
मैं ने कहा था आज न जाएँ घोड़े बेहद थके हुए हैं
उस ने कहा था जाना तय है दुश्मन पीछे लगे हुए हैं
मोईन निज़ामी
ग़ज़ल
क़यामत तक न वो ऐ 'मशरिक़ी' मंज़िल पे पहुँचेंगे
ख़याली घोड़े जो मैदान में दौड़ाने वाले हैं
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
मैं चीख़ता रहा कि नहीं ख़त ये मेरे नाम
लेकिन हवा के घोड़े पे था नामा-बर सवार
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
फिरेगा और कितने दिन ख़याली पार घोड़े पर
उड़ेगा शेर-गोई में न इंजन का धुआँ कब तक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सर-ए-तुर्बत भी घोड़े पर हवा के वो सवार आए
क़यामत हम-इनाँ आई न दुश्मन हम-रिकाब आया