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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
आबिद उमर
ग़ज़ल
दर-ए-जानाँ से आता हूँ तो लोग आपस में कहते हैं
फ़क़ीर आता है और बा-शौकत-ए-शाहाना आता है
जगन्नाथ आज़ाद
ग़ज़ल
मुश्ताक़ हूँ तुझ लब की फ़साहत का व-लेकिन
'राँझा' के नसीबों में कहाँ हीर की आवाज़