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ग़ज़ल
मुलाएम उँगलियों की हर इबारत याद है मुझ को
हर इक अंगुश्तरी को हल्क़ा-ए-ज़ंजीर पढ़ लेना
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
अंगुश्तरी कूँ दिल की बनाया हूँ नज़्र-ए-यार
लख़्त-ए-जिगर के ल'अल कूँ उल्फ़त का देख डाँक
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जो बिछड़ते वक़्त मेरे लम्स में ठहरी रही
चश्म-ए-याक़ूती में उस अंगुश्तरी का अक्स है
रहबर सुलतानी
ग़ज़ल
वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा