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ग़ज़ल
अगर ये ज़ख़्म भरना है तो फिर भर क्यूँ नहीं जाता
अगर ये जान-लेवा है तो मैं मर क्यूँ नहीं जाता
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
समझना इंक़लाब और 'इश्क़ में अंतर नहीं कुछ भी
है 'फ़ानी' वीर-रस का ख़ुद-बख़ुद श्रंगार हो जाना