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ग़ज़ल
ख़ल्वत में जिस की नर्म-मिज़ाजी थी बे-मिसाल
महफ़िल में बे-सबब वही मुझ से अकड़ गया
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
जो अकड़ के शान से जाए है प्यार से ये बताए जा
कि बुलंदियों की है आरज़ू तू दिलों में पहले समाए जा
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
तीखे-पन के तिरे क़ुर्बान अकड़ के सदक़े
क्या ही बैठा है लगा कर के सिपर का तकिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
किसी की पीठ कुबड़ी को भला ख़ातिर में क्या लावे
अकड़ में नौजवानी के जो मारे दम जवानी का
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दोस्तो मेरी नहीं तक़्सीर दिल देने में कुछ
दिल वो ले कर ही उठे जब पास अड़ कर बैठ जाए
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
अकड़ कर बोलने वाले न हो गर तान आटे में
तवे से क़ब्ल ही हाथों में रोटी टूट जाती है
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
सज-धज निगह अकड़ छब हुस्न-ओ-अदा-ओ-शोख़ी
नाम-ए-ख़ुदा हैं तुझ में ऐ नौजवान आठों