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ग़ज़ल
न इत्मिनान से बैठो न गहरी नींद सो पाओ
मियाँ इस मुख़्तसर सी ज़िंदगी से चाहते क्या हो
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं
अहमद शहरयार
ग़ज़ल
किसी से मिल के बिछड़ना बड़ी अज़िय्यत है
तो क्या मैं अहद-इ-तमन्ना का फ़ासला हो जाऊँ
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
कहाँ मुमकिन किसी को बारयाबी उन की महफ़िल में
न इत्मीनान-ए-कोशिश है न उम्मीद-ए-सिफ़ारिश है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
झिजक कर मैं ने पूछा क्या कभी बाहर नहीं आता
जवाब आया उसे ख़ल्वत में इत्मीनान रहता है
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें
बिजलियों में रह के तिनकों का भरोसा क्या करें
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-ज़ब्त-ए-उल्फ़त है तो 'अहसन' फिर ख़तर कैसा
न धड़के दिल भी सीने में वो इत्मीनान पैदा कर