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ग़ज़ल
ख़िरद-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'शुऊर' इस से हमें क्या इंतिहा के बा'द क्या होगा
बहुत होगा तो वो जो इब्तिदा होने से पहले था
अनवर शऊर
ग़ज़ल
मैं चला कहाँ से ख़बर नहीं कि सफ़र में है मिरी ज़िंदगी
मिरी इब्तिदा कहीं और है मिरी इंतिहा कोई और है
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद