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ग़ज़ल
बाग़ में वो ख़्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर
डाली डाली नौरस पत्ते सहज सहज जब डोलें हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इशारों से दिलों को छेड़ कर इक़रार करती हैं
उठाती हैं बहार-ए-नौ के नज़राने तिरी आँखें
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तिरछी नज़रों में वो उलझी हुई सूरज की किरन
अपने दुज़्दीदा इशारों में गिरफ़्तार आँखें
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
बज़्म हो बाज़ार हो सारी निगाहें मुझ पे हैं
क्या उन आँखों के इशारों पर अमल मैं ने किया
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
उल्फ़त-ए-देरीना का जब ज़िक्र इशारों में किया
मुस्कुरा कर मुझ से पूछा तुम को किस से प्यार था