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ग़ज़ल
ज़िंदगी की क़द्र सीखी शुक्रिया तेग़-ए-सितम
हाँ हमें थे कल तलक जीने से उकताए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
क्यूँ घबराए घबराए हो क्यूँ उकताए उकताए हो
इक मुद्दत के बा'द आए हो कुछ दिन तो क़याम करो 'वाली'
वाली आसी
ग़ज़ल
तज दिया तुम ने दर-ए-यार भी उकता के 'फ़राज़'
अब कहाँ ढूँढने ग़म-ख़्वार तुम्हारे जाएँ