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ग़ज़ल
उम्मीदें सारी दुनिया से 'वसीम' और ख़ुद में ऐसे ग़म
किसी पे कुछ न ज़ाहिर हो तो कोई मेहरबाँ क्यूँ हो
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
सितमगर तुझ से उम्मीद-ए-करम होगी जिन्हें होगी
हमें तो देखना ये था कि तू ज़ालिम कहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
दस्त-ए-क़ातिल से कुछ उम्मीद-ए-शफ़ा थी लेकिन
नोक-ए-ख़ंजर से भी काँटा न गुलू का निकला
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दिल हम ने दिया था तुझे उम्मीद-ए-वफ़ा पर
तुम हम से नहीं करते वफ़ा कुछ नहीं करते
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ग़ैर का शिकवा क्यूँकर रहता दिल में जब उम्मीदें थीं
अपना फिर भी अपना था बेगाना फिर बेगाना था