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ग़ज़ल
उस ने सहराओं की सैर करते हुए इक शजर के तले
अपनी आँखों से ऐनक उतारी कि दो हिरनियाँ खोल दीं
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
गो गुहर हो ऐ परी नाज़-ए-निगाह-ए-हूर का
ऐनक-ए-रिज़वाँ की हल्क़ा हैं तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में
हाथ पड़ गया काँटों पर फूलों के बदले भूल में
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
दोनों तेरे आरिज़ पर दिन रात मिले ये रहते हैं
ऐनक-ए-महर-ओ-माह न क्यूँ हो कान का बाला ज़ुल्फ़ का हल्क़ा
शाह नसीर
ग़ज़ल
मय पिला कर मुझ से कहते हैं वो हो कर बे-हिजाब
चढ़ गई आँखों पे जब ऐनक नज़र शीशे में है
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
याद है भीगा था तेरा जिस्म जब बारिश के बा'द
किस तरह तोड़ी थी मैं ने अपनी ऐनक याद है