मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं
हम मछेरों से पूछो समुंदर नहीं है ये इफ़रीत है
तुम ने क्या सोच कर साहिलों से बंधी कश्तियाँ खोल दीं
उस ने वा'दों के पर्बत से लटके होऊँ को सहारा दिया
उस की आवाज़ पर कोह-पैमाओं ने रस्सियाँ खोल दीं
दश्त-ए-ग़ुर्बत में मैं और मिरा यार-ए-शब-ज़ाद बाहम मिले
यार के पास जो कुछ भी था यार ने गठड़ियाँ खोल दीं
कुछ बरस तो तिरी याद की रेल दिल से गुज़रती रही
और फिर मैं ने थक हार के एक दिन पटरियाँ खोल दीं
उस ने सहराओं की सैर करते हुए इक शजर के तले
अपनी आँखों से ऐनक उतारी कि दो हिरनियाँ खोल दीं
आज हम कर चुके अहद-ए-तर्क-ए-सुख़न पर रक़म दस्तख़त
आज हम ने नए शाइ'रों के लिए भर्तियाँ खोल दें
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