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ग़ज़ल
वली काकोरवी
ग़ज़ल
सूफ़ी ये सहव महव हुए सद्द-ए-बाब-ए-उंस
क्या इम्बिसात कार-गह-ए-हसत-ओ-बूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
ख़ू-ए-ग़म दिल को है या'नी हिस-ए-ग़म कुछ भी नहीं
क्या है अब कार-गह-ए-नाज़-ओ-सितम कुछ भी नहीं
मानी जायसी
ग़ज़ल
पर्दा-ए-चश्म पे रक़्साँ है तिरा अक्स हुनूज़
सो बस इक वहम है ये कार-गह-ए-साअत-ए-हिज्र
अंजुम उसमान
ग़ज़ल
शोहरत मिरी राहे थी जहाँ दीदा-वरी की
इस कार-गह-ए-शौक़ में अफ़्साना बना हूँ
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
संग-ए-तिफ़्लाँ से ज़रा बच के रहे क़स्र-ए-बुलंद
ये वही कार-गह-ए-शीशा-गराँ है कि जो था