आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ख़्वाब-ख़्वाब"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ख़्वाब-ख़्वाब"
ग़ज़ल
गुज़र सकूँगा न इस ख़्वाब ख़्वाब बस्ती से
यहाँ की मिट्टी भी ज़ंजीर-ए-पा है मेरे लिए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
ख़्वाब-दर-ख़्वाब चला करता है आँखों में जो शख़्स
ढूँडने निकलें उसे और कहीं रहता ही न हो