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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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वो ख़्वाब ख़्वाब फ़ज़ा वो नगर किसी का था

परवेज़ बज़्मी

वो ख़्वाब ख़्वाब फ़ज़ा वो नगर किसी का था

परवेज़ बज़्मी

MORE BYपरवेज़ बज़्मी

    वो ख़्वाब ख़्वाब फ़ज़ा वो नगर किसी का था

    मुसाफ़िरत तो मिरी थी सफ़र किसी का था

    नज़र-गुरेज़ रहीं इस तरह मिरी आँखें

    कि जैसे मेरा नहीं मेरा घर किसी का था

    लहू तो मेरा छुपा था कली की मुट्ठी में

    खुले गुलाब पे हक़्क़-ए-नज़र किसी का था

    बहुत बुलंद मिरी पासबाँ फ़सीलें थीं

    धड़कते दिल को मिरे फिर भी डर किसी का था

    ये हाथ पाँव मिरे थे ज़बान मेरी थी

    जो दे रहा था इशारे वो सर किसी का था

    स्रोत :
    • पुस्तक : AURAAQ (पृष्ठ 246)
    • रचनाकार : Wazir Agha, Sajjad Naqvi
    • प्रकाशन : Auraaq Chauk, Urdu Bazar, Lahore (April, May 1982)
    • संस्करण : April, May 1982

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