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ग़ज़ल
कभी बच्चों को मिल कर खिलखिलाते नाचते देखा
लगा तब ज़िंदगी ये हम ने क्या से क्या बना ली है
नीरज गोस्वामी
ग़ज़ल
ख़ुदा तब बेबसी में शब सहर रोया यक़ीनन है
गुलों से खिलखिलाते जब शजर भी हो गए पत्थर
शुभा शुक्ला मिश्रा अधर
ग़ज़ल
हवा जब तुम को छू कर आग से करती है अठखेली
चटख़्ते खिलखिलाते हैं शरारे रक़्स करते हैं
आसिम वास्ती
ग़ज़ल
चमन में ग़ुंचा-ए-गुल खिलखिला के मुरझाए
यही वो थे जिन्हें हँस हँस के जान देना था