दिल ने चाहा था जिसे अपने सहारे की तरह
दिल ने चाहा था जिसे अपने सहारे की तरह
ग़म उसी शख़्स का भड़का है शरारे की तरह
तेरा एहसान न भूलूँगा ग़म-ए-यार कि तू
रोज़ सजता है मिरी आँख में तारे की तरह
कितने इल्हाम के रंगों से रंगा है चेहरा
जिस को पढ़ता हूँ मैं क़ुरआन के पारे की तरह
शोअ'ला लपका है तिरे हुस्न का ऐसे भी कभी
शेर मेरे भी हुए शोख़ अंगारे की तरह
इक निशाँ रेत पे देखा था मुसलसल बनते
मरते लम्हों में कहीं दूर किनारे की तरह
गुदगुदाता है तिरी याद का मौसम दिल को
खिलखिलाते हुए फूलों के नज़ारे की तरह
वस्ल के पल भी बुझी राख की सूरत ठहरे
सर्द-मेहरी से किए एक इशारे की तरह
- पुस्तक : al-aqraba magazine islamabad Pakistan quarterly-July-september-2015 (पृष्ठ (شائع شدہ سہ ماہی الاقرباء اسلام آباد پاکستان شمارہ جولائی .ستمبر ۲۰۱۵))
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