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ग़ज़ल
गुलाब-रुत की शफ़क़-मंज़री का क्या कहना
बसंत-रुत का मगर ज़र्द रंग है कुछ और
पी पी श्रीवास्तव रिंद
ग़ज़ल
ताहिर तोनस्वी
ग़ज़ल
बहार आते ही यूँ लगा कि चमन दरीदा-दहन हुआ है
गुलाब-रुत में चमन पे नाज़िल ये आफ़तें भी नई नहीं हैं
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
हिरा क़ासमी
ग़ज़ल
हिरा क़ासमी
ग़ज़ल
ये क्या रुत है अब की रुत में देखें ज़र्द गुलाब
चेहरे सूखे फूल ख़िज़ाँ के आँखें ज़र्द गुलाब
नून मीम दनिश
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
नसीम मख़्मूरी
ग़ज़ल
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं
ये कैसी रुत है ये किन अज़ाबों के सिलसिले हैं