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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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लगा था यूँ किसी ऊँची उड़ान से उतरे

फ़रहत नवाज़

लगा था यूँ किसी ऊँची उड़ान से उतरे

फ़रहत नवाज़

MORE BYफ़रहत नवाज़

    लगा था यूँ किसी ऊँची उड़ान से उतरे

    तसव्वुरात के जब ला-मकान से उतरे

    शजर की बाँहों में सोई हवा को छेड़ो

    थकन का बोझ तो कुछ जिस्म-ओ-जान से उतरे

    मैं देख तो लूँ ज़माने के तेवरों का रंग

    वो थोड़ी देर को ही मेरे ध्यान से उतरे

    चमक के ख़ुशियों का सूरज भी थक गया आख़िर

    उदासियों के साए मकान से उतरे

    अना यूँ घात में बैठी रहेगी कितनी देर

    कभी तो मेरे बदन के मचान से उतरे

    बुलंदियों की मसाफ़त का दम नहीं मुझ में

    मिरे लिए कोई चश्मा चटान से उतरे

    गुलाब-रुत में भी इतनी उदासियाँ 'फ़रहत'

    तिरे लिए तो इरम आसमान से उतरे

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