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ग़ज़ल
दिल में है ऐ 'बर्क़' उस बुत के दर-ए-दंदाँ की याद
ये गुहर अर्श-ए-बरीं का गोश्वारा हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
वो तन्हा जुस्तुजू बेचैन सी रहती है आँखों में
क़यामत आ भी जाए तो गवारा कर के देखूँगा
खुर्शीद अकबर
ग़ज़ल
मुँह पर ये गोश्वारा मोती का जल्वा-गर है
जैसे क़िरान-ए-बाहम हो माह ओ मुश्तरी का
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
मोहम्मद मुबशशिर मेयो
ग़ज़ल
हिसाब-ए-दोस्ताँ करते तो हर्फ़ आता तअल्लुक़ पर
उठा रक्खा उसे और गोश्वारा रख लिया मैं ने
सिद्दीक़ मुजीबी
ग़ज़ल
सुख़न ये शब का गुज़ारी हुई वो सुब्ह-ए-विसाल
हयात-ए-हुस्न का इतना ही गोश्वारा हुआ