लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता
लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता
क़बा-ए-गुल से उसे इस्तिआ'रा क्या करता
बहार-ए-गुल में हैं दरिया के जोश की लहरें
भला मैं कश्ती-ए-मय से किनारा क्या करता
नक़ाब उलट के जो मुँह 'आशिक़ों को दिखलाते
तुम्हीं कहो कि तुम्हारा नज़ारा क्या करता
सुना जो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार यार ने तो कहा
तबीब मरते हुए काहे चारा क्या करता
हिलाल-ए-ईद का हर-चंद हो जहाँ मुश्ताक़
तुम्हारी अब्रूओं का सा इशारा क्या करता
हक़ीक़त-ए-दहन-ए-यार खोलता क्यूँ-कर
नहुफ़्ता राज़ को मैं आश्कारा क्या करता
क़दम को पीछे रह-ए-ख़ौफ़नाक-ए-इश्क़ में रख
ये पहले देख ले दिल है इशारा क्या करता
ख़ुम-ए-शराब से मुझ मस्त ने न मुँह फेरा
कनार-ए-आब से प्यासा किनारा क्या करता
बहार थी जो वो गुल-चेहरा यार भी होता
अकेले जा के चमन का नज़ारा क्या करता
गुदाज़ मोम से हर उस्तुख़्वाँ को पाता हूँ
फिर और सोज़िश-ए-दिल का हरारा क्या करता
बड़ा ही ख़्वार 'इलाक़ा है गुलशन-ए-उल्फ़त
मिरी तरह कोई इस में इजारा क्या करता
शराब-ए-ख़ुल्द की ख़ातिर दहन है रखता साफ़
वुज़ू में वर्ना ये ज़ाहिद ग़रारा क्या करता
शिकस्ता-दिल न हो उस बुत के नाज़ से क्यूँ-कर
सुलूक शीशा से है संग-ए-ख़ारा क्या करता
बहार-ए-गुल में पियाला लगा लिया मुँह से
शराब पीने को मैं इस्तिख़ारा क्या करता
फ़क़ीर को नहीं दरकार शान अमीरों की
सर-बरहना सर-ए-गोश्वारा क्या करता
बहार-ए-गुल में था जामे से बाहर ऐ 'आतिश'
न करता मैं जो गरेबाँ को पारा क्या करता
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.