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ग़ज़ल
हँसने में जो आँसू आते हैं नैरंग-ए-जहाँ बतलाते हैं
हर रोज़ जनाज़े जाते हैं हर रोज़ बरातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब'
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
दिया मेरे जनाज़े को जो कांधा उस परी-रू ने
गुमाँ है तख़्ता-ए-ताबूत पर तख़्त-ए-सुलैमाँ का