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ग़ज़ल
जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है
चमन में रात भर बनती है और दिन भर बरसती है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
किया है दिल ने बेगाना जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही से
हमें जागीर-ए-आज़ादी मिली दरबार-ए-शाही से
अहमद जावेद
ग़ज़ल
जहान-ए-रंग-ओ-बू की दिलकशी बन जाएँ हम दोनों
किसी मासूम बच्चे की हँसी बन जाएँ हम दोनों
सीमा फ़रीदी
ग़ज़ल
जहान-ए-रंग-ओ-बू में थी ये वीरानी मगर कब तक
हमारे प्यार की ख़ुशबू न पहुँची थी यहाँ जब तक
अनीस सुलताना
ग़ज़ल
जहान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का सबात ले के गया
वो सिर्फ़ दिल ही नहीं काएनात ले के गया
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
हम से मिल के फ़ितरत के पेच-ओ-ख़म को समझोगे
हम जहान-ए-फ़ितरत का इक सुराग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
जहान-ए-ख़ैर-ओ-शर से उठ के क्या जाने कहाँ जाते
कोई जन्नत अगर होती तो फ़रज़ाने कहाँ जाते