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ये जहान-ए-रंग-ओ-बू अपनी जगह

ख़िज़्र अब्बास

ये जहान-ए-रंग-ओ-बू अपनी जगह

ख़िज़्र अब्बास

MORE BYख़िज़्र अब्बास

    ये जहान-ए-रंग-ओ-बू अपनी जगह

    और तुझ से गुफ़्तुगू अपनी जगह

    तेरी निस्बत से लगी बाद-ए-सबा

    शहर तेरे चलती लू अपनी जगह

    किस तरह दे दूँ फ़ज़ीलत एक को

    इश्क़ मेरा और तू अपनी जगह

    है मिरी ख़्वाहिश कि तू हँसता रहे

    ज़ख़्म मेरे बे-रफ़ू अपनी जगह

    हैं बहुत काफ़िर तिरे नाज़-ओ-अदा

    आँख मेरी बा-वुज़ू अपनी जगह

    हर जगह तू ख़ुद नहीं रश्क-ए-माह

    हुस्न तेरा चार-सू अपनी जगह

    मुस्कुराहट से तिरी महका चमन

    सब खिले फूलों की बू अपनी जगह

    इश्क़ को बख़्शी है कितनी आबरू

    क़ैस ख़ुद बे-आबरू अपनी जगह

    तेरी चाहत का भी है अपना मक़ाम

    और ख़ुद की जुस्तुजू अपनी जगह

    ख़ाक में मैं मिल गया तेरे लिए

    वो मेरा जज़्ब-ए-नुमू अपनी जगह

    हर तरफ़ साए ही साए थे 'ख़िज़र'

    पर तिरे साए की ख़ू अपनी जगह

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