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ग़ज़ल
निराले हैं यही दुनिया में तौबा तोड़ने वाले
उधर साक़ी 'रियाज़' आए इधर जाम-ए-शराब आया
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब
मुझ को बद-नाम करेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
नशात-ए-मय है कि जाम-ए-शराब है क्या है
वो ख़्वाब-ए-हुस्न है या हुस्न-ए-ख़्वाब है क्या है
नईम सबा
ग़ज़ल
शराब पी कर दिया है तुम ने जो हम को जाम-ए-शराब आधा
अज़ल से लिक्खा हुआ था शायद कि पाएँ हम तुम सवाब आधा