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ग़ज़ल
माना जीवन में औरत इक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझ को ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
अपनी बीती कैसे सुनाएँ मद-मस्ती की बातें हैं
'मीरा-जी' का जीवन बीता पास के इक मय-ख़ाने में
मीराजी
ग़ज़ल
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना क्या खोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
मन बै-रागी तन अनुरागी क़दम क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
अब कोई छू के क्यूँ नहीं आता उधर सिरे का जीवन-अंग
जानते हैं पर क्या बतलाएँ लग गई क्यूँ पर्वाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
मैं कितने रंगों में ढलता कब तक ख़ुद से लड़ पाता
जीवन एक सफ़र था जिस ने रोज़ नया इक मोड़ लिया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को
और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को