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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-बाहमी के हाए वो राज़-ओ-नियाज़
आशिक़ाना हुस्न था और इश्क़ मअशूक़ाना था
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
मआल-ए-इख़्तिलाफ़-ए-बाहमी अफ़्सोस क्या कहिए
हर इक क़तरे में शोरिश है मगर तूफ़ाँ नहीं होता
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
वो रब्त-ए-बाहमी नहीं वो प्यार भी नहीं
पहली सी वो निगाह-ए-तरहदार भी नहीं