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ग़ज़ल
देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुछ भी हूँ फिर भी दुखे दिल की सदा हूँ नादाँ
मेरी बातों को समझ तल्ख़ी-ए-तक़रीर न देख
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मुँह में जब बात रुकी चूम लिया प्यार से मुँह
दम-ए-तक़रीर किसी शोख़ की लुक्नत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
दम-ए-तक़रीर नाले हल्क़ में छुरियाँ चुभोते हैं
ज़बाँ तक टुकड़े हो हो कर मिरा अफ़्साना आता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
दम-ए-तक़रीर खिल उठते हैं गुलिस्ताँ क्या क्या
यूँ तो इक ग़ुंचा-ए-नौरस है दहन क्या कहना