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ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
ये जंगल बाग़ है 'आदिल' ये दलदल आब-ए-जू है
कहीं कुछ है जिसे तरतीब में लाना पड़ेगा