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ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद आस्ताँ नहीं मिलता
ज़मीं मिले तो मिले आसमाँ नहीं मिलता
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
बहुत दुश्वार है तस्कीन-ए-ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू करना
जो चुन सकते हो काँटे तो गुलों की आरज़ू करना
अतहर ज़ियाई
ग़ज़ल
हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ
वो मुझे देखें न देखें मैं उन्हें देखा करूँ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
सर-ए-नियाज़ झुका है ज़े-राह-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद
तिरे करम की क़सम कोई मुद्दआ तो नहीं
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
मुझ से दम ले लो अगर तेग़-ए-सितम में दम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
ख़ाक-दाँ को हासिल-ए-ज़ौक़-ए-नज़र समझा था मैं
ख़्वाब के आलम को कितना मो'तबर समझा था मैं
सय्यद मेराज जामी
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा
या'नी ये पर्दा तो उठ सकता है आसानी के साथ
अख़्तर अली अख़्तर
ग़ज़ल
असर तो जज़्बा-ए-ज़ौक़-ए-दरूँ में है मगर कम-कम
शब-ए-फ़ुर्क़त के मारों को है उम्मीद-ए-सहर कम-कम
ज़ुबैर इर्तज़ा
ग़ज़ल
कमाल-ए-ज़ौक़-ए-सज्दा इस से बढ़ कर और क्या होगा
वहीं वो नक़्श-ए-पा उभरा जहाँ रख दी जबीं मैं ने
ओम प्रकाश लाग़र
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा है सर-बसर महदूद
वसीअ' दायरा-ए-हुस्न और नज़र महदूद