फ़ज़ा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा है सर-बसर महदूद
फ़ज़ा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा है सर-बसर महदूद
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
MORE BYसय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
फ़ज़ा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा है सर-बसर महदूद
वसीअ' दायरा-ए-हुस्न और नज़र महदूद
नफ़स की गर्म-रवी बर्क़ का तबस्सुम थी
मिली भी फ़ुर्सत-ए-हस्ती तो किस क़दर महदूद
वहाँ ज़ुहूर-ए-तजल्ली को चाहिए इक उम्र
यहाँ ये आलम-ए-हस्ती कि सर-बसर महदूद
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-तपिश रुख़्सत-ए-तपिश न मिली
बिसात-ए-आलम-ए-इम्काँ है किस क़दर महदूद
मुशाहिदात की हद से गुज़र सकी न निगाह
तख़य्युलात की दुनिया है सर-बसर महदूद
मिरे गुनाहों की वुसअ'त को देखने वाले
तू अपने शेवा-ए-अल्ताफ़ को न कर महदूद
निगाहें क्या हों हक़ीक़त से आश्ना 'फ़र्रुख़'
तअ'य्युनात से है वुसअत-ए-नज़र महदूद
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