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ग़ज़ल
तुम्हारी नीम-वा आँखों में जाने क्या है पोशीदा
कि शोख़ी है ग़ज़ब है प्यार है या क़हर है जानाँ
ज़िया शहज़ाद
ग़ज़ल
ख़्वाजा शौक़
ग़ज़ल
राज़ पोशीदा हैं कितने इक तिरे इज़हार में
वर्ना जुरअत है किसी की सर उठे इंकार में
डॉक्टर नदीम अकबर नदीम
ग़ज़ल
इज़हार-ए-जज़्बा-ए-दिल-ए-पोशीदा देखना
अब फूल ख़ुद हैं ख़ार के गिरवीदा देखना
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
ग़म ही ग़म है पोशीदा हर ख़ुशी के पर्दे में
मौत ही नज़र आई ज़िंदगी के पर्दे में
ग़ुलाम मुस्तफा बेग साबिर बरारी
ग़ज़ल
कोई रंज है न शिकायतें मुझे अपने होश-ए-परीदा से
ये वो शम्अ' थी जो भड़क उठी मिरी आह-ए-नीम-कशीदा से
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
हम तिरे बंदे हमारा तू ख़ुदा-वंद-ए-करीम
दस्त-ए-क़ुदरत में तिरे दोनों-जहाँ की तंज़ीम