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ग़ज़ल
किस लिए उज़्र-ए-तग़ाफुल किस लिए इल्ज़ाम-ए-इश्क़
आज चर्ख़-ए-तफ़रक़ा-पर्वाज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखो
कोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
अब कोई छू के क्यूँ नहीं आता उधर सिरे का जीवन-अंग
जानते हैं पर क्या बतलाएँ लग गई क्यूँ पर्वाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
हुजूम-ए-जल्वा में परवाज़-ए-शौक़ क्या कहना
कि जैसे रूह सितारों के दरमियाँ गुज़रे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
शैख़-ए-हराम-लुक़्मा की पर्वा है क्यूँ तुम्हें
मस्जिद भी उस की कुछ नहीं मिम्बर भी कुछ नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
हूँ गिरफ़्तार-ए-कमीं-गाह-ए-तग़ाफ़ुल कि जहाँ
ख़्वाब सय्याद से पर्वाज़-ए-गिरानी माँगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उड़ते ही रंग-ए-रुख़ मिरा नज़रों से था निहाँ
इस मुर्ग़-ए-पर-शिकस्ता की परवाज़ देखना