आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "पाईं"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "पाईं"
ग़ज़ल
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
है शौक़-ए-सफ़र ऐसा इक उम्र से यारों ने
मंज़िल भी नहीं पाई रस्ता भी नहीं बदला