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ग़ज़ल
जो ख़्वाब देखे हैं दिल उन से क्यूँ उलझता है
मैं अब ये फ़ल्सफ़ा शायद समझ न पाऊँगी
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सूफ़िया दीपीका कौसर
ग़ज़ल
तेरे पहलू से जो उठ्ठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख़्स को पाऊँगा जिधर जाऊँगा