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ग़ज़ल
उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़लसफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे
अहमद सलमान
ग़ज़ल
यहाँ काँप जाते हैं फ़लसफ़े ये बड़ा अजीब मक़ाम है
जिसे अपना अपना ख़ुदा कहें उसे सज्दा करना हराम है
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
फ़लसफ़े इश्क़ के अब कौन किसे समझाए
हर तरफ़ उस की तजल्ली है तो पर्दा क्या है
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
नसीहत और हिकायत है नई नस्लों की ही ख़ातिर
पुराने दौर के अब फ़लसफ़े अच्छे नहीं लगते
अरशद साद रुदौलवी
ग़ज़ल
'फ़ज़ा' तुम उलझे रहे फ़िक्र ओ फ़लसफ़े में यहाँ
ब-नाम-ए-इश्क़ वहाँ क़ुरअ-ए-हुनर निकला
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
लिखूँ मैं फ़लसफ़े की शाइरी या गीत उल्फ़त के
मैं शाइ'र हूँ मिरी हर नज़्म का उन्वान मिट्टी है