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ग़ज़ल
इन गली-कूचों में बहनों का मुहाफ़िज़ कौन है
कस्ब-ए-ज़र की दौड़ में बस्ती से माँ-जाए गए
तालिब जोहरी
ग़ज़ल
मौत से रिश्ता मिरा माँ की तरह है 'सादी'
ज़िंदगी लगती है मुझ को सगी बहनों की तरह
सादिया सफ़दर सादी
ग़ज़ल
बहनो तुम्हारी माँग का सिन्दूर क्या हुआ
बच्चों तुम्हारे हाथ में चाक़ू कहाँ से आए
शमसुद्दीन एजाज़
ग़ज़ल
ये बेटों के सर भाई का ख़ूँ बहनों की चीख़ें
इबरत हो अगर हम को ये सौग़ात बहुत है
क़ाज़ी एहतिशाम बछरौनी
ग़ज़ल
जिस से इस नन्हे बच्चे की माँ बहनों का क़त्ल हुआ
मौसम-ए-गुल का हर इक मंज़र ख़ूनी मंज़र लगता है
आशा प्रभात
ग़ज़ल
ये बेटों के सर भाई का ख़ूँ बहनों की चीख़ें
इबरत हो अगर हम को ये सौग़ात बहुत है